विषय सूची
गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
दशम अध्यायअब आओ, दसवें अध्याय में प्रवेश करें। विभूति योग इसका नाम है। अध्यायों के नाम महाभारत में नहीं हैं। उसमें तो ‘भगवद्गीता- पर्वणि प्रथमोऽध्यायः, द्वितीयेऽध्यायः’ आदि ऐसे ही हैं। आचार्य लोगों ने अध्यायों के नामों की कुछ व्याख्या-आख्या भी नहीं की है। लेकिन अब तो भाई, यह बात चल गयी है। ‘स्थितस्य गतिः चिन्तनीय’ आचार्य लोग कहते हैं कि जो बात चल जाये, उसकी कोई संगति लगा लेनी चाहिए; उसके साथ ज्यादा खटपट करने की जरूरत नहीं है। नहीं तो खंडन मंडन में दिमाग खराब होता है। भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वच: । भगवान् कहते हैं कि अर्जुन सुनो! ‘महाबाहो’ का अर्थ है योद्धा। ‘महाबाहो’ संबोधन के द्वारा भगवान् यह संकेत कर रहे हैं कि यदि तुम युद्ध नहीं करोगे तो तुम्हारी ये बड़ी-बड़ी बाहें निष्फल चली जायेंगी और बाहुओं की सफलता तब है, जब वे कोई बड़ा भार वहन करें. तुम्हारी बाहों पर धर्म का बड़ा भार पड़ा है और तुम उसको उतारकर फेंक देना चाहते हो? धर्मरक्षा और धर्म-संवर्द्धन का भार तुम्हारी बाहों पर है। अरे, तुम तो दूर की कौड़ी ला सकते हो, दूर की वस्तु को भी उठा सकते हो! मैं तो तुमको बहुत नजदीक की बात बताता हूँ- ‘श्रुणु मे परमं वचः।’ परम वचन सुनाता हूँ। यह भी देखो कि वचन तो परम है ही, श्रेष्ठ है ही,यह ‘प्रीयमाणाय’ भी है- अर्थात् तुम मेरी बात सुनकर खुश होते हो, उससे तो वह कहानी ही चाहिए। ‘हितकाम्यया’- भगवान् कहते हैं कि मैं जो कुछ कह रहा हूँ हित की कामना से ही कह रहा हूँ। मेरे हृदय में हित ही हित भरा है। इस तरह वक्ता के हृदय में प्रीति-तृप्ति है और वचन सर्वोत्कृष्ट है- इसलिए आओ, सुनो। देखो, इस दसवें अध्याय में दो विषय हैं। उन पर आप लोग अलग-अलग विवेकपूर्वक ध्यान देना। एक है योग और एक है विभूति। जब ठंडे पानी में बर्फ मिला हुआ रहता है, तो उसका नाम होता है योग; और जब जमकर सिल्ली के रूप में आ जाता है, तब उसका नाम होता है विभूति।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1
संबंधित लेख
क्रम संख्या | अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज