गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 204

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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चतुर्थ अध्याय

अब चौथा अध्याय प्रारंभ होता है श्रीभगवान् के वचन से। हमलोग जो प्रवचन बोलते हैं, उसमें ‘वचन’ शब्द है। वचन शब्द के पहले ‘प्र’ लग गया तो प्रवचन हो गया। हम मध्य प्रदेश में गये तो लोग वहाँ प्रवचन नहीं बोलते थे। यह बोलते थे कि आज स्वामीजी के प्रिय वचन होंगे। प्रकृष्ट वचन नहीं, प्रियवचन। किसी-किसी की ऐसी श्रद्धा होती है कि यदि बात पुरानी हो तो उनको बहुत ज्यादा महत्व देते हैं। उनकी दृष्टि में प्राचीन आचार्यों की कही हुई बात का महत्व होता है। किन्तु कई लोगों की श्रद्धा ऐसी होती है कि अत्यंत आधुनिकतम बात हो तो वे किसी को महत्व देते हैं। कहते हैं कि यह विज्ञान है, साइंस है।

अब यहाँ जो कर्मयोग है, कर्म-संन्यास है और उसके द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार है, इसे पुरानी बात मानी जाय कि नयी बात? भगवान् ने कहा यदि पुरानी बात मानने में तुम्हारीं श्रद्धा हो तो यह पुरानी है और यदि नहीं बात मानने में तुम्हारी श्रद्धा हो तो जो बोल रहा हूँ वह बिल्कुल नयी बात है। उसको दोनों तरफ से लो।

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्। [1]

असल में यह योग शाश्वत है, अव्यय है। परमात्मा तो अव्यय है ही, जीवात्मा भी अव्यय है और जगत् भी अव्यय है। गीता में जगत् के लिए भी अव्यय शब्द का प्रयोग है।

अश्वत्थं प्रहुरव्ययम्। [2]

जब अश्वत्थ अव्यय है, परमात्मा अव्यय है और आत्मा अव्यय है तो इस योग ने ही ऐसा क्या अपराध किया है कि यह अव्यय नहीं है? जगत् अव्यय, आत्मा अव्यय, परमात्मा अव्यय और उसकी प्राप्ति का उपाय भी अव्यय है। इसलिए भगवान् कहते हैं कि योग अवनाशी है। जब तक जगत् रहेगा, जीव रहेगा और ये हमेशा रहेंगे ही, तब तक ईश्वर रहेगा। ईश्वर की प्राप्ति का उपाय योग भी रहेगा। यह बात सबके आदि में मैंने ही कही थी, मैंने ही सबसे पहले इसका उपदेश दिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (1)
  2. (15.1)

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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