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गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
तृतीय अध्यायअर्जुन का प्रश्न कितना सीधा सादा और सरल है। उसके मन में आत आयी तो उसने पूछने में कोई संकोच नहीं किया। ‘अर्जुन उवाच’ का अर्थ है ‘अर्जुनस्य वचनम्’ अर्थात् अर्जुन का वचन। संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं कि मैं जो बोल रहा हूँ, वह अर्जुन का वचन है। अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि महाराज, अन्ततोगत्वा आपका मत क्या है? इस पर भगवान् श्रीकृष्ण ने एक बुद्धि तो बता दी सांख्य की और दूसरी बुद्धि बता दी योग की। सांख्य और योग क्या है? सम्यक्ख्यानम् संख्या- किसी प्रकार का सम्यक् आख्यान कर देना, वर्णन कर देना, व्याख्यान कर देना, इसका नाम है संख्या। संख्यैव सांख्यः सम्यक् ख्यानमेव सांख्यम्- किसी वस्तु का भलीभाँति ठीक-ठीक, यथार्थ वर्णन करना, शुद्ध वस्तु का निरूपण करना- इसका नाम है सांख्य। इसी तरह ‘योजनम् योगः’। यज् धातु समाधि अर्थ में भी है और संयोग अर्थ में भी है। योगः समाधिः। योगः संयोजनम्। एक वस्तु को दूसरी वस्तु के साथ जोड़ देने का नाम योग है अथवा एक में दूसरे वस्तु को मिलाकर, समाहित करके सारे प्रश्नों का समाधान कर लेना योग है। समस्त कार्य-कलापों का कारण में लय कर देना भी योग है और दो अलग-अलग वस्तुओं को जोड़ देना भी योग है। योग अधिकारी के द्वारा अनुष्ठित कर्तृतन्त्र, प्रयत्नरूप, फलोत्पादक व्यापार विशेष है। कर्ता के द्वारा अनुष्ठित बारम्बार आवर्तमान, फल-विशेष का उत्पादक, प्रयत्न रूप- चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो अथवा बौद्धिक हो- एक क्रिया कलाप का, व्यापार का नाम, भी योग है। संक्षेप में हम योग और सांख्य के संबंध में कहना चाहें तो यह कह सकते हैं कि मन-पसंद वस्तु को मिलाने वाला योग है और जो वस्तु जैसी है, उसको वैसा लखा देने वाला सांख्य है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने इन दोनों को बुद्धि कहा है और साफ-साफ बताया है कि हे अर्जुन, तुम बुद्धियोगी रहो। वे यह भी कह चुके हैं कि- वेद गुणत्रयाभिमानी के लिए कर्म का विधि-निषेध करते हैं। इसलिए तुम निस्त्रैगुण्य अवस्था को प्राप्त हो जाओ। यह भी कह चुके हैं कि ‘एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ’[2] यह ब्राह्मी स्थिति है और इसमें निर्वाण प्राप्त हो जायेगा। यह भी कहा गया है कि ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।’[3]लेकिन इन वचनों के द्वारा भगवान् कहना क्या चाहते हैं- अर्जुन की बुद्धि में जितना स्पष्ट होना चाहिए, उतना स्पष्ट नहीं हुआ। इसलिए साफ-साफ उत्तर देने के लिए आग्रहग करते हैं। उनका प्रश्न परीक्षा लेने के लिए नहीं है, उसमें कोई छल-कपट नहीं है। इसलिए अर्जुन को जो बात स्पष्ट नहीं हुई, उसके संबंध में वे प्रश्न करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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