गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 175

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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तृतीय अध्याय

यदि तुम कहते हो कि मैं यह नहीं करूँगा, वह नहीं करूँगा तो इसका भी अहंकार होता है। ‘बुद्धेर्फलम् अनाग्रहः’- बुद्धि का जो फल है जिद्दी न होना।

यहाँ मैं एक महाराज की बात सुनाता हूँ। एक शहर की बात है, जहाँ महाराज के लिए ऊँचा आसन लगाया हुआ था। महाराज उस पर जाकर बैठ गये। बैठ गये तो आर्यसमाजी लोग आये और बोले कि तुम्हारे अन्दर क्या विशेषता है कि तुम सबसे ऊँचे बैठे हो? महाराज बोले कि भाई, तुम जहां कहोगे, वहीं बैठ जायेंगे। वे आसने से उतर गये और उन लोगों के पास जाकर बैठ गये। अब जिन लोगों ने सिंहासन बनाया था, वे बोले कि हम लाठी से तुम्हारा सिर फोड़ देंगे। तुमने हमारे गुरुजी को, हमारे महाराजजी को नीचे क्यों उतार लिया? महाराज बोले कि मेरे लिए लाठी मत चलाओ, शोर मत करो, मैं फिर वहाँ बैठ जाता हूँ और वे फिर उस सिंहासन पर बैठ गये। अब देखो, इसमें क्या लगता है? लोगों को अपनी शान में, जिद में नहीं आना चाहिए; बल्कि अपने जो कर्तव्य कर्म हैं, उनको पूरा करते जाना चाहिए। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः [1]

अपने कर्म को, कर्तव्य को बेमन से भी मत करो! इसको भली-भाँति मन लगाकर पूरा करो। जो असक्त होकर कर्म करता है, उसको परम सत्य की प्राप्ति होती है। परमात्मा की प्राप्ति का यही साधन है।

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय: ।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि ॥[2]
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरा जन: ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥[3]

देखो, जनकादिको जो संसिद्धि प्राप्त हुई है, वह कर्म करके ही प्राप्त हुई है। संसिद्धि शब्द का एक अर्थ है अंतःकरण- शुद्धि होकर परमात्मा को प्राप्त करने की योग्यता और दूसरा अर्थ है परमात्मा की प्राप्ति। यदि आत्मा स्वभावतः नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्त अद्वितीय ब्रह्म है तो कर्म अंतःकरण- शुद्धि द्वारा ही अज्ञान-निवृत्ति, अविद्या-निवृत्ति से उपलक्षित मोक्ष का साधन हो सकता है। अविद्या-निवृत्ति से उपलक्षित आत्मा ही मोक्ष है और यदि मोक्ष स्वतः सिद्ध नहीं है, उत्पाद्य है तो कर्म से मोक्ष की प्राप्ति होगी। हमको स्वामी दयानन्दजी से इसलिए बहुत प्रेम है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (3.19)
  2. 20
  3. 21

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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