विषय सूची
गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
द्वितीय अध्यायभाई यह योग क्या है? बोले, कि समता ही योग है। सिद्धि और असिद्धि में सम हो जाओ, आसक्ति छोड़ दो। योग में स्थित होकर साधन-बुद्धि से कर्म का अनुष्ठान करो। यह युद्ध भी तुम्हारा साधन है। लेकिन यह तभी साधन होगा, जब तुम सिद्धि और असिद्धि में सम हो जाओगे। यह नहीं कि तुम्हें युद्ध में आसक्ति हो जाये और तुम कहो कि हम तो बस लड़ेंगे ही लड़ेंगे। आसक्तिचार प्रकार की होती है; यह बात हमें हमारे गुरुजी ने बतायी है। एक तो फल में आसक्ति होती है- जैसे युद्ध करने के बाद हमको राज्य मिलेगा। दूसरी आसक्ति होती है कर्मासक्ति- जैसे सेनापति ने हुक्म दे दिया कि युद्ध बंद करो लेकिन बोले कि देने दो हुक्म, हम तो मारे बिना रहेंगे नहीं। तीसरी आसक्ति है कर्तृत्वासक्ति जैसे यह कर्म नहीं करेंगे, पर दूसरा कर्म करेंगे, कुछ न कुछ हद तक तो करते ही रहेंगे। यहाँ कर्म में आसक्ति तो नहीं है, पर कुछ न कुछ करते रहने की आसक्ति है। एक बनिये की चीजें तौलने की आदत थी। वह हो गया साधु। जब कोई उसको भिक्षा में रोटी दे तो वह उसको हाथ पर लेकर तौले कि यह दो तोले की होगी, कि एक छटाँक की होगी। इस प्रकार उसको तौलने की जो आदत पड़ गयी, वह उसकी कर्तृत्वासक्ति हो गयी। अब जो चौथी आसक्ति है, वह क्या है? अकर्तापन की है। किसी ने छाती तानी, तो कहा कि क्या है? मुझमें कर्तापन नहीं है? पीठ की रीढ़ सीधी की, तो कहा कि कर्तापन नहीं है? लेकिन ब्रह्मज्ञान के बिना आत्मा में परिच्छिन्नता रहते हुए जो अकर्तृत्वका अभिमान है, वह अकर्तृत्वासक्ति है, क्योंकि वास्तविक नहीं है। ब्रह्मज्ञान के बिना अपने को अकर्ता मानना भ्रम है! यह भी दूर होना चाहिए। किसी ने कहा देखो, भाई, यह पतंजलि को पढ़कर आया है। यह कथन लाक्षणिक ही हुआ, क्योंकि वह पतंजलि को पढ़कर नहीं आया, पातंजल दर्शन पढ़कर आया है। यहाँ पतंजलि शब्द से पतंजलि ऋषि का बोध न होकर उनसे संबंधित दर्शन का बोध हुआ। इसी को लक्षणा वृत्ति बोलते हैं। किंतु कौन सी लक्षणा हुई? जहल्लक्षणा कि अजहल्लक्षणा? यह ‘जहल् लक्षणा’ हो गयी। पतंजलि बिलकुल छूट गये और उनके स्थान पर उनका योगदर्शन हो गया। उनका योग क्या है? ‘योगः चित्तवृत्तिनिरोधः’[1]यदि तुमको समाधि के मार्ग में जाना है, तब तो योग का लक्षण है चित्त वृत्ति निरोध। किन्तु तुमको गीता के मार्ग में चलना हो, तो युद्ध करते हुए योग होता है- यह योग का लक्षण होना चाहिए।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.2
संबंधित लेख
क्रम संख्या | अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज