श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
किन्तु श्री चैतन्य की कृपा लाभ करने के बाद, रूप-सनातन की भाँति गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में योग न देकर, प्रबोधानंद सरस्वती-संप्रदाय में योगदान कैसे दे सकते थे? श्री चेतन्य चन्द्रामृत ग्रन्थ का पाठ करने से मालूम होता है कि श्री चैतन्य का चरणाश्रय प्राप्त करने के पूर्व प्रबोधानन्द ‘मायावादी थे[1] इससे यह निश्चित होता है कि श्री चैतन्य के श्री चरण दर्शन से पूर्व ही उन्होंने संन्यास अवलम्बन कर लिया था और फिर स्वरूप दामोदर की भाँति गौर-प्रेमसिंधु में निमज्जित हुए थे। इस सिद्धान्त को यदि युक्तिसह माना जाय तो श्री चैतन्य के तिरोभाव के 163 वर्ष बाद रची जाने वाली अनुरागवल्ली का विवरण भ्रान्त मानना होगा[2]।’ भक्ति रत्नाकार और अनुरागवाली के रचयिताओं ने अपने प्रबोधानंद संबंधी विवरण को एक बात से ओर भी अप्रामाणिक बना दिया है। इन दोनों ग्रन्थों में गोपाल भट्ट गोस्वामी को कृष्ण कर्णामृत की कृष्णवल्लभा टीका का रचयिता बतलाया गया है। किन्तु टीकाकार ने इस टीका के द्वितीय श्लोक में स्वयं को द्राविड़ नृसिंह भट्ट के पुत्र हरिबंश भट्ट का सुत बतलाया है। यदि श्री गोपाल भट्ट इस टीका के अनुसार हरिवंश भट्ट के पुत्र सिद्ध होते हैं तो त्रिमल्ल-वेकंट-प्रबोधानंद वालो बात सर्वथा मिथ्या हो जाती है और सरस्वती पाद के परिचय का भ्रान्त आधार भी नष्ट हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री चैतन्य चन्द्रामृत श्लोक 19, 32, 42। श्री चैतन्य चरितेर उपादान, पु० 168-169
- ↑ श्री मद्द्राविड़ नीवृदम्बूधि विधु: श्रीमान्नृसिंहोभवद्, भट्ट श्री हरिवंश उत्तम गुण ग्रामैकभूस्तत्सुत: ।तत्पुत्रस्य कृति स्त्वियं वितनुता गोपाल नाभ्नो मुदा, गोपीनाथ पदारविन्द मकरंदा नन्दि चेतोऽलिन:॥
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