श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
श्री प्रबोधानंद के संबंध में सम्प्रति यह बात बहुत अधिक प्रसिद्ध है कि इनका पूर्व नाम प्रकाशानंद था। काशी में श्री चैतन्य द्वारा पराजित किये जाने पर यह उनके अनुयायी बन गये थे और महाप्रभु ने ही उनको प्रबोधानंद नाम प्रदान किया था। किन्तु प्रकाशानंद वाली घटना का उल्लेख मुरारी, कवि कर्णापुर, जयानंद ओर लोचनदास ने अपनी रचनाओं में नही किया। इस घटना का विस्तृत वर्णन वृन्दावनदास के चैतन्य भागवत श्रीर कृष्णदास कविराज के चैतन्य चरितामृत में मिलता है। किन्तु इन दोनों ग्रन्थों में कहीं भी प्रकाशानंद और प्रबोधानंद को एक व्यक्ति नहीं बतलाया गया है। चैतन्य चरितामृत में प्रबोधानंद कृत श्री चैतन्य चन्द्रामृत का एक भी श्लोक उद्घृत नहीं किया गया है। प्रकाशानंद ही यदि प्रबोधानंद होते तो उनका श्री चैतन्यानुराग प्रदर्शित करने के लिये कविराज गोस्वामी चंद्रामृत के एक-दो श्लोक अवश्य उद्धृत करते। इतिहासज्ञों द्वारा नितान्त अप्रामाणिक माने जाने वाले ‘अदैत प्रकाश’ [1] के सत्रहवें अध्याय में हमको प्रथमवार यह जानने को मिलता है कि प्रकाशानंद ही बाद में प्रबोधानंद बन गये थे! अत: इस दिशा से भी प्रबोधानंद सरस्वती के सम्बन्ध में कोई विश्वसनीय बात हाथ नहीं आती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ईशान नागरकृत अद्वैत प्रकाश की आलोचना विमानबिहारी मजूमदार ने अपने चैतन्य चरितेरउपादान नामक ग्रंथ में की है और इसकी ‘कृत्रिमता’ के पांच प्रवल कारण उपस्थित किये हैं। (देखिये पृ० 433-465)
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