श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
इसी काल की एक अन्य रचना मनोहरदास कृत ‘अनुरागवल्ली’ से मालूत होता है कि श्री चैतन्य के त्रिमल्ल भट्ट के घर से बिदा होने के कुछ दिन बाद यह भट्ट गोष्ठी तीर्थ-यात्रा के लिये निकली थी और पुरी पहुँचकर महाप्रभु के दर्शन किये थे। श्री चैतन्य ने इनको घर लौटकर भजन-साधन करने का आदेश दिया था। इसके बाद काल क्रम से तीनों भाइयों का देहान्त हो गया और उनकी पत्नियाँ भी आगे-पीछे दिवंगत हो गयी। [1] गोपाल भट्ट गोस्वामी सब का समाधान करके वृन्दावन करके वृन्दावन वास करने चले गये।[2] भक्ति रत्नाकार और अनुराग-वल्ली के इस विवरण में श्री विमान बिहारी मजूमदार के अनुसार एक गुरुतर समस्या अमीमांसित रह गई है। उन्हीं के शब्दों में ‘श्री चैतन्य ने त्रिमल्लभट्ट के घर में प्रबोधानन्द पर कृपा की थी। उस समय वे निश्चित रूप से गृही थे क्योंकि संन्यासी होकर अपने भाइयों के साथ एक घर में रहने का नियम नहीं है और अनुराग-वल्लों में तीनो भाइयों को तीनो पत्नियों का भी उल्लेख हुआ है। इसके बाद वे कब सरस्वती संप्रदाय भुक्त संन्यासी हुये? रामचन्द्र, परमानन्द, दामोदर, सुखानन्द, गोविन्दानन्द, ब्रह्मानन्द प्रभृति ‘पुरी’; नरसिंह, पुरुषोत्तम, रघुनाथ प्रभृति ‘तीर्थ’ और सत्यानन्द आदि ‘भारती’ दशनामी संप्रदाय भुक्त होने के बाद श्री चैतन्य के कृपापात्र बने थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क्रम-क्रम तीन भाईयेर सिद्धि प्राप्त हईल। ता सभार धरनी अग्रपश्चात् पाइल ।। (अ. व. पृ. ७)
- ↑ सर्व समाधान करि उदासीन हईया। वृन्दावने आइलैन प्रेमेमत्त हईया ।। (अ. व. पृ. ७)
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज