सवैया
आजु सखी नंद-नंदन की तकि ठाढ़ौ हों कुंजन की परछाहीं।
नैन बिसाल की जोहन को सब भेदि गयौ हियरा जिन माहीं।
घाइल धूमि सुमार गिरी रसखानि सम्हारति अँगनि जाहीं।
एते पै वा मुसकानि की डौंड़ी बजी ब्रज मैं अबला कित जाहीं।।81।।
दोहा
ए सजनी लोनो लला, लखौ नंद के देह।
चितयौ मृदु मुस्काइ कै, हरी सबै सुधि देह।।82।।