सहज गीता -रामसुखदास पृ. 36

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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छठा अध्याय

(आत्म संयम योग)

तात्पर्य है कि वह सुख सात्त्विक, राजस और तामस- तीनों सुखों से अत्यंत विलक्षण है। ऐसे सुख में स्थित हुआ ध्यानयोगी फिर कभी उस सुख से विचलित नहीं होता। ऐसे सुख को प्राप्त करना ही सभी साधनों की कसौटी है, पूर्णता की पहचान है। कारण कि उस सुख से बढ़कर दूसरा कोई सुख, कोई लाभ है नहीं; और उस सुख में स्थित होने पर योगी बड़े-से-बड़े दुख से भी विचलित नहीं किया जा सकता। इस प्रकार जिसमें दुखरूप संसार का सर्वथा वियोग है, उसे ही ‘योग’ नाम से जानना चाहिए। उस योग की प्राप्ति के लिए साधक को न उकताये हुए चित्त से तथा दृढ़ निश्चय के साथ ध्यानयोग का अभ्यास करना चाहिए।
(निर्गुण-निराकार के ध्यान का वर्णन-) संपूर्ण कामनाएँ संकल्प से उत्पन्न होती हैं। साधक उन संपूर्ण कामनाओं का सर्वथा त्याग करके और मन से इंद्रियों को उनके अपने-अपने विषयों से हटाकर धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा धीरे-धीरे संसार से उपराम हो जाय, जल्दबाजी न करे। फिर बुद्धि को परमात्मा में स्थिर कर दे अर्थात् ‘सब जगह एक परमात्मा ही परिपूर्ण है, परमात्मा के सिवाय और कुछ है ही नहीं’- ऐसा पक्का निश्चय कर ले। ऐसा निश्चय करने के बाद फिर किसी प्रकार का किंचिन्मात्र भी चिंतन न करे; न संसार का चिंतन करे, न परमात्मा का। यदि साधक इस प्रकार ‘चुप साधन’ न कर सके तो उसका अस्थिर तथा चंचल मन जहाँ-जहाँ जाय, वहाँ-वहाँ से हटाकर उसे एक परमात्मा में ही भलीभाँति लगाने का अभ्यास करे। इस प्रकार साधन में लगे हुए जिस योगी के संपूर्ण पाप नष्ट हो गये हैं, जिसका रजोगुण तथा उसकी वृत्तियाँ शान्त हो गयी हैं और जिसका मन सर्वथा शान्त, निर्मल हो गया है, ऐसे ब्रह्मस्वरूप ध्यानयोगी को निश्चित ही उत्तम सात्त्विक सुख प्राप्त होता है। इस प्रकार अपने-आपको सदा परमात्मा में लगाता हुआ पापरहित योगी सुखपूर्वक ब्रह्मप्राप्तिरूप अत्यंत सुख का अनुभव कर लेता है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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