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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
श्री वृन्दावन के स्वच्छ एवं अति विचित्र चिन्तामणियों से रचित भूमण्डल को, चिन्मय आनन्द विस्तार करने वाले फल-पुष्प युक्त वृक्ष लताओं को, सामवेद के गान की अव्यक्त मधुर ध्वनि से कलकलाय मान (गुञ्जार करते हुए) पक्षि समूह को एवं चिन्मय रस युक्त नदी तथा जलाशयों को मेरा मन स्मरण करे।।3।।
जिनके पत्र समूह मरकत मणिमय हैं, पुष्प समूह हीरा के सदृश हैं, कलिका समूह सुन्दर-सुन्दर मुक्तावत् हैं, प्रवाल (अंकुर) समूह कुरुविन्द मणि की भाँति हैं, अनेक प्रकार के रसों से पूर्ण फल-समूह पद्म राग मणिवत् हैं एवं अविरल मधुवर्षी तथा नील रत्नों के समान मधुकर समूह से परिवेष्टित श्री वृन्दावन के वृक्ष राज शोभित हो रहे हैं।।4।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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