विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
कभी वह (श्रीयुगल किशोर का) उबटन करती है और कभी उन्हें सुगन्धित जल से स्नान करती हैं, कभी तो वसनभूषण, सुगन्ध-माल्यादि से सम्यक आराधना करती है और कभी मृदुलपट से निर्मित वीजना करके नींद लाने का साधन करती है।।62।।
कभी तो वह श्यामसुसन्दर के साथ लीला के लिए महारंग विस्तार करती है, श्रृंगार, व्यजनादि हाथ में लेकर कभी पीछे पीछे गमन करती है, कुछ कहने पर अथवा कुछ ने कहने पर भी निरन्तर प्रेम पूर्वक श्रीराधा जी की कोई न कोई सेवा करके पूर्णपरमानन्द में निमग्न रहती हैं।।63।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज