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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
ब्रह्मादि श्रेष्ठ देवतागण, इन्द्रादि साधारण देवता, असुर या मनुष्य अथवा योगीश्वर कोई भी भगवान की युवती रूप-माया का पार नहीं पा सकता अति क्षुद्रतर मैं भी इसी माया के चाण्डालवत् क्रूर कर्मों का आचरण कर रहा हूँ। हे श्रीवृन्दावन! कब आप मुझे स्वीकार करें तो साधुगण भी मुझे वन्दना करने लगेगें ।।36।।
विचित्र मुणिमुक्ता समूह तथा नाना मणिकांतियुक्त सुवर्ण खचित मनोहर मुरली पर धारण कर श्रीवृन्दावन में जो निरन्तर श्रीराधा जी का उज्ज्वल यश गान करता है, वह मनोहर श्याम-विग्रह मेरे मन अवस्थान करे।।37।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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