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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
श्रीराधा जी के सुगन्धित सुशीतल चरण-कमलों का अपने वदन, लाचन तथा हृदय को स्पर्श कराके बार-बार घ्राण करते हुए कोई अनिर्वचनीय श्याम-विग्रह विराजमान है।।31।।
श्रीराधा जी के चरण कमलों से उच्छलित माधुर्य सागर के बिन्दु-समुद्र द्वारा कब मेरा प्रेमोन्मत्त हृदय श्रीवृन्दावन में लय होगा?।।32।।
श्रीवृन्दावन में अति मधुर-अद्भुत-लीलाओं में मनोरम नूपुर ध्वनियुक्त शोभित हो रहे हैं, नखमणियों की छटा से चारों दिशाओं को आलोकित करने वाली श्रीराधा जी के पदविन्यास का मैं ध्यान करता हूँ।।33।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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