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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
सुस्निग्ध कान्तिधारा, परिमल, सौन्दर्य एवं सौकुमार्य्य आदि गुणयुक्त श्रीराधा जी के उन निनादयुक्त-नूपुर-भूषित-अनुपम चरण-कमलों की मुझे स्फूर्त्ति हो।।25।।
तलवों में अरुणता, ऊपर के भाग में गौरवर्ण एवं मधुर लास्य के द्वारा श्रीहरि के मन को चुराने वाले, श्रीराधा जी के सुन्दर चरण-कमलों को मेरा मन जपता रहे।।26।।
श्रीराधा जी के चरणकमलों की अंगुलियों के पादांगद तथा नूपुरों की रत्नमय किरणों से नख-मणिचन्द्र से उच्छलित कांति की उद्भासिता तरगों को देखने की मैं इच्छा करता हूँ।।27।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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