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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
श्रीराधा जी का वह कैशोर, वह सुगौर-अंगों की विधि भंगी, वह सौंदर्य, वह अमृतवत् शीतल सुन्दर-बोलिन तथा उन सकल अश्रु-रोमांच आदि भावों को स्मरण कर कौन नहीं मुग्ध होगा।।5।।
नीलकमल-वर्ण श्रीहरि जिसके सान्द्र मधुररस से लोभायमान रहते हैं, अनन्त प्रकाश्यमान प्रफुल्लित स्वर्णपद्म के अन्तरीयकोशवत् श्रीराधा के मुखचुन्द्र का स्मरण कर।।6। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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