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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
समस्त चिदचिद् द्वैत प्रपंच की वस्तुओं में विस्तारिणी अनन्त माधुर्यपूर्णा, एवं स्वर्ण-लता भी भाँति आकृति वाली-।।68।।
शरीष के पुष्प की भाँति कोमल, रंगीन, संस्निग्ध तथा सुन्दर कैशोर की माधुर्य कांति तथा भंगिमादि के चमत्कार समूह से सम्वलित उत्तंग मधुर काम रसेकात्मक सागर प्रवाहित कर श्रीवृन्दावन के स्थावर-जंगमात्मक समस्त प्राणियों की मूर्च्छित करने वाली है- ।।70।।
श्रीराधा जी अनेक दिव्य अलंकार धारण कर रही हैं, दिव्य माला एवं चन्दन से चर्च्चिता हैं, दिव्य रेशमी कंचुक-स्तवकवत् कुंचित् अंचल युक्त निचोलिनी धारण कर रही हैं- ।।71। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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