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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
जिसने सत्ख्याति की अपेक्षा त्याग दी है, अख्याति की कोई बात नहीं करता, धर्मनिष्ठा का आदर नहीं करता, विद्याविनोदादि जिसने सब त्याग देये हैं, तप, ज्ञान योगादि की भी जिसने उपेक्षा कर दी है, गुरु-आदि के वाक्यों को भी नहीं सुनता और अधिक क्या? जिसकों अपने देह की ओर भी ध्यान नहीं है, हे वृन्दावन! ऐसा पुरुष जब तुम्हारी शरण ग्रहण कर ले तो आप कभी उसकी उपेक्षा नहीं करते हैं।।63।।
श्रीराधा तथा उनके मुख्य भूषण (श्रीश्यामसुन्दर) दोनों एकमात्र प्रीति-रस के ही विग्रह हैं, भक्तिहीन हैं, कंगाल एवं कीच के सागर समान मुझ पतित को क्या अपना श्रीवृन्दावन प्रदान करेंगे।।64।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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