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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
यहाँ पक्षिगणों का एवं मधुकरों का सुन्दर निनाद श्रवणों को सुखदेने वाला है, दिव्य कोमल कर्पूर-परागवद् उज्ज्वल बालुराशि से परिव्याप्त हे।।77।।
यहाँ स्वच्छ एवं सन्तोषामृत वर्षणकारी कालिन्दी के रमणीय पुलिनों में एक अत्यन्त मोहिन आश्चर्यजनक कृंजावाटी शोभित हो रही है।।78।।
अत्यन्त अद्भत वैचित्री एवं श्रीवृन्दावन के द्वारा वह प्रकाशित हो रही हे और वहाँ की समस्त वस्तुएं आश्चर्य एवं रससार की उद्दीपक हैं।।79।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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