विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
मेरा मस्तक अति आदर सहित नित्य ही श्रीवृन्दावन की वन्दना करे, जिह्वा सद्गुणों का उच्च कीर्त्तन करने में विह्वल रहे, उसकी नव-कुंञ्जों को मार्जन करने के लिए दोनों हाथ, तथा श्रीवृन्दावन की परिक्रमा करने के लिए पांव, उसकी महिमा सुनने में कान, उसके दर्शन करने में नेत्र तथा उसके स्मरण करने में मेरा मन नित्य ही लगा रहे ।।48।।
समस्त सौभाग्यों से अद्भुत, सब मंगलों से अद्भुत समसत चिन्मय वस्तुओं से अद्भुत, सकल रमणीयता से अद्भुत, समस्त वरदानों से अद्भुत एवं समस्त श्रीकृष्ण-धामों से अद्भुत, यहाँ का समस्त ही अद्भुत हैं, अतः इस श्रीवृन्दावन का भाव-सहित भजन कर ।।49।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज