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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
जो अनन्यभाव से श्रीवृन्दावन का भजन करता है, एकमात्र वही श्रीराधारमण के चरण-कमलों के अपार माधुर्य-सिन्धु का अनुभव प्राप्त कर सकता है।।।5।।
श्रीवृन्दावन की गुणकीर्त्ति गान करने में मेरी रसना नृत्य करती रहे। यह श्रीधाम सबसे ऊपर विरजामन है। बात को जानने वाला व्यक्ति इस श्रीवृन्दावन का कभी भी नहीं त्याग कर सकता।।6।।
श्रीवृन्दावनचन्द्र की कथा तो दूर रही और श्रीवृन्दावनेश्वरी की तथा उनकी सखियों का तो कहना ही क्या है? श्रीवृन्दावन के एक वृक्ष का एक पत्ता भी समस्त जगत को मुग्ध करने वाला है।।7।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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