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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
वह भूमि दिव्य अनन्त महारस के द्वीपवत, सदा समस्त जगत के ऊपर विराजमान एवं कामकला आनन्द में चमत्कारी है। श्रीराधाकृष्ण के महारस में मदान्ध होकर सर्वांगों से विलुण्ठन करने वालों के लिए अद्भुत शोभा सौभाग्यनिधि स्वरूपा इस श्रीवृन्दावन-भूमि को निरन्तर स्मरण कर।।91।।
इस वृन्दावन में श्रीराधाकृष्ण की सुन्दर केलिशय्या रचने में सखी व्यस्त हैं, रसावेश में मृग, पक्षी, द्रुमलता-समूह उन्मत्त उन्मत्त हो रहे हैं, दिव्य अनेक निकुंज-पुंज शोभित हैं, दिव्य अनेक रत्नस्थली द्वारा रमणीय, दिव्य-दिव्य सरोवर, नदी और मणिमय पर्वतों से भूषित-इस महामोहन श्रीवृन्दावन का मैं ध्यान करता हूँ।।92।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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