विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीवृन्दावन में श्रीराधा की उत्तमोत्तम दासीगणों में कोई-कोई तो निरन्तर कुसुमों को परिष्कार करती है, शोभाभेद से विविध पुष्पों द्वारा कोई कोई दिव्य मालादि की रचना करती हैं, कोई आनन्दपूर्वक युक्ति से गन्ध-द्रव्यादि प्रस्तुत करती हैं और कोई अति सुन्दर रेशमी वस्त्र बुनने में नियुक्त हो रही हैं।।75।।
हे मन! महामाधुर्यराशि एवं एकांगस्थित-शोभा द्वारा समस्त दिव्य नवीन युवती देवीगणों को भी जो युगल-रसाविष्टचित्त वधूवृन्द (ब्रज गोपीगण) तृणवत् उपेक्षा करती हैं, उनका भजन कर और मुनीन्द्रगणों को भी चित्रवत् कर देने वाले श्रीयुगलकिशोर का इस श्रीवृन्दावन में भजन कर।।76।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज