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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीमद्वृन्दावनवासी कोई-कोई भाग्यवान् पुरुष ही श्रीराधा प्राणबन्धु के युगल-चरण-कमलों से विगलित प्रेमामृत समुद्र को अति आश्चर्यमय माधुर्य धारा का आस्वादन कर पाते हैं।।61।।
समस्त आनन्द राशियों को आच्छादन करने वाला जो आनन्दसार है उस प्रेम का वर्षा प्रवाह करते हुए इस श्रीवृन्दावन के वृक्षों के पीछे श्रीराधारूप तड़ितयुक्त श्रीकृष्ण रूप धन उदित हो रहा है।।62।।
प्रफुल्लित नव हेम-चम्पक एवं नील कमलदलवत् उज्ज्वल गौरनील कांतियुक्त जो नव दिव्य गोप-गोपी श्रीवृन्दावन में प्रकाशित हो रहे है- उन दोनों की लीलाएँ मेरे हृदय में स्फुरित हों।।63।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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