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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीराधा-रसवशवर्ती श्रीवृन्दावनचन्द्रको मैं नमस्कार करता हूँ- जो अनेक अचिंत्य मूर्त्ति धारण कर नाना विध शक्ति प्रकट करते हैं एवं जो कभी अपने आप भी अपरिसीम रूप माधुरी विस्तार कर अपने भावों में भावित होकर बहुविध रसधारा बरसाते हैं।।27।।
नित्य ही सुन्दरी श्रेष्ठ-कमलमुखी श्रीराधा को क्रोड़देश में रख कर प्रेमार्द्र चित्त से पुलकित होकर श्रीहरि लालन करते हैं एवं किसी अनिर्वचनीय नव नवायमान रति की भिक्षा करते हुए विचित्र संलाप रचना करते हैं, वहीं श्रीराधाविलासी श्रीश्यामसुन्दर श्रीवृन्दावन के लतागृह में शोभित हो रहे हैं।।28।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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