विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण ने सांसारिक परम्परा से हटकर कर्म करने की कला बतायी कि कर्म तो करो, श्रद्धापूर्व करो, किन्तु फल के अधिकार को स्वेच्छा से छोड़ दो। फल जायेगा कहाँ? यही कर्मों के करने का कौशल है। निष्काम साधक की समग्र शक्ति इस प्रकार कर्म में लगी रहती है। आराधना के लिये ही तो शरीर है। फिर भी जिज्ञासा स्वाभाविक है कि या सदैव कर्म ही करते रहना है या इसका कुछ परिणाम भी निकलेगा? इसे देखें-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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