विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायज्ञानमार्ग को भी श्रीकृष्ण ने बुद्धियोग कहा था कि अर्जुन! यह बुद्धि तेरे लिये ज्ञानयोग के विषय में कही गयी और यहाँ निष्काम कर्मयोग को भी बुद्धियोग कहा गया। वस्तुतः दोनों में बुद्धि का, दृष्टिकोण का ही अन्तर है। उसमें लाभ-हानि का रिकार्ड रखकर उसे जाँच कर चलना पड़ता है, इसमें बौद्धिक स्तर पर समत्व बनाये रखना पड़ता है इसलिये इसे समत्व बुद्धियोग भी कहा जाता है। इसलिये धनंजय! तू समत्व बुद्धियोग का आश्रय ग्रहण कर, क्योंकि फल की वासनावाले अत्यन्त कृपण हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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