विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
यह इष्ट से समत्व दिलाता है, इसलिये इसे समत्व योग कहते हैं। कामनाओं का सर्वथा त्याग है, इसलिये इसे निष्काम कर्मयोग कहते हैं। कर्म करना है, इसलिये इसे कर्मयोग कहते हैं। परमात्मा से मेल कराता है, इसलिये इसका नाम योग अर्थात् मेल है। इसमें बौद्धिक स्तर पर ध्यान रखना पड़ता है कि सिद्धि और असिद्धि में समभाव रहे, आसक्ति न हो, फल की वासना न आने पाये इसलिये यही निष्काम कर्मयोग बुद्धियोग भी कहा जाता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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