विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायकर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। कर्म करने में ही तेरा अधिकार है, फल में कभी नहीं। ऐसा समझ कि फल है ही नहीं। फल की वासना वाला भी मत हो और कर्म करने में तेरी अश्रद्धा भी न हो। अब तक योगेश्वर श्रीकृष्ण ने उनतालीसवें श्लोक में पहली बार कर्म का नाम लिया, किन्तु यह नहीं बताया कि वह कर्म है क्या और उसे करें कैसे? उस कर्म की विशेषताओं पर प्रकाश डाला कि-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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