यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 825

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

अष्टदश अध्याय

आज तो धनुर्धर अर्जुन है नहीं। यह नीति, विजय-विभूति तो अर्जुन तक सीमित रह गयी। तत्सामयिक थी यह। यह तो द्वापर में ही समाप्त हो गयी। लेकिन ऐसी बात नहीं है। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि मैं सबके हृदय-देश में निवास करता हूँ। आपके हृदय में भी वे हैं। अनुराग ही अर्जुन है। अनुराग आपके अन्तःकरण की इष्टोन्मुखी लगन का नाम है। यदि ऐसा अनुराग आप में है तो सदैव वास्तविक विजय है और अचल स्थिति दिलानेवाली नीति भी सदैव रहेगी, न कि कभी थी। जब तक प्राणी रहेंगे, परमात्मा का निवास उनके हृदय-देश में रहेगा, विकल आत्मा उसे पाने का इच्छुक होगा और उनमें से जिसके भी हृदय में उसे पाने का अनुराग उमड़ेगा, वही अर्जुन की श्रेणीवाला होगा; क्योंकि अनुराग ही अर्जुन है। अतः मानवमात्र इसका प्रत्याशी बन सकता है।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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