विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायआज तो धनुर्धर अर्जुन है नहीं। यह नीति, विजय-विभूति तो अर्जुन तक सीमित रह गयी। तत्सामयिक थी यह। यह तो द्वापर में ही समाप्त हो गयी। लेकिन ऐसी बात नहीं है। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि मैं सबके हृदय-देश में निवास करता हूँ। आपके हृदय में भी वे हैं। अनुराग ही अर्जुन है। अनुराग आपके अन्तःकरण की इष्टोन्मुखी लगन का नाम है। यदि ऐसा अनुराग आप में है तो सदैव वास्तविक विजय है और अचल स्थिति दिलानेवाली नीति भी सदैव रहेगी, न कि कभी थी। जब तक प्राणी रहेंगे, परमात्मा का निवास उनके हृदय-देश में रहेगा, विकल आत्मा उसे पाने का इच्छुक होगा और उनमें से जिसके भी हृदय में उसे पाने का अनुराग उमड़ेगा, वही अर्जुन की श्रेणीवाला होगा; क्योंकि अनुराग ही अर्जुन है। अतः मानवमात्र इसका प्रत्याशी बन सकता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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