विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्यायअथ चेत्वमिमं धम्र्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि। और यदि तू इस ‘धर्मयुक्त संग्राम’ अर्थात् शाश्वत-सनातन परमधर्म परमात्मा में प्रवेश दिलाने वाला धर्मयुद्ध नहीं करेगा तो ‘स्वधर्म’ अर्थात् स्वभाव से उत्पन्न संघर्ष करने की क्षमता, क्रिया में प्रवृत्त होने की क्षमता को खोकर पाप अर्थात् अवागमन और अपकीर्ति को प्राप्त होगा। अपकीर्ति पर प्रकाश डालते हैं- अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्। सब लोग बहुत काल तक तेरी अपकीर्ति का कथन करेंगे। आज भी पदच्युत होनेवाले महात्माओं में विश्वामित्र, पराशर, निमि, श्रृंगी इत्यादि की गणना होती है। बहुत से साधक अपने धर्म पर विचार करते हैं, सोचते हैं कि लोग हमें क्या कहेंगे? ऐसा भाव भी साधना में सहायक होता है। इससे साधना में लगे रहने की प्रेरणा मिलती है। कुछ दूरी तक यह भाव भी साथ देता है। माननीय पुरुषों के लिये अपकीर्ति मरण से भी बढ़कर होती है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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