विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वादश अध्याय
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति। जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना ही करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों के फल का त्यागी है, जहाँ कोई शुभ विलग नहीं है, अशुभ शेष नहीं है, भक्ति की इस पराकाष्ठा से युक्त वह पुरुष मुझे प्रिय है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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