विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वादश अध्याय
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः। जो पुरुष आकांक्षाओं से रहित, सर्वथा पवित्र, ‘दक्षः’ अर्थात् आराधना का विशेषज्ञ है (ऐसा नहीं कि चोरी करता हो तो दक्ष है। श्रीकृष्ण के अनुसार कर्म एक ही है, नियत कर्म- आराधना-चिन्तन, उसमें जो दक्ष है), जो पक्ष-विपक्ष से परे है, दुःखों से मुक्त है, सभी आरम्भों का त्यागी वह मेरा भक्त मुझे प्रिय है। करने योग्य कोई क्रिया उसके द्वारा आरम्भ होने के लिये शेष नहीं रहती।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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