विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायत्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्। सात्विक, राजस और तामस इन तीन गुणों के कार्यरूप भावों से यह सारा जगत् मोहित हो रहा है इसलिये लोग इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को तत्त्व से भली प्रकार नहीं जानते। मैं इन तीनों गुणों से परे हूँ अर्थात् जब तक अंशमात्र भी गुणों का आवरण विद्यमान है, तब तक कोई मुझे नहीं जानता। उसे अभी चलना है, वह राही है और-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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