यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचम अध्याय
जब ब्रह्म में प्रवेश दिलानेवाली क्षमताएँ आती हैं, उस समय विद्या होती है, विनय होता है। मन का शमन इन्द्रयों का दमन, अनुभवी सूत्रपात का संचार, धरावाही चिन्तन, ध्यान और समाधि इत्यादि ब्रह्म में प्रवेश दिलानेवाली सारी योग्यताएँ उसके अन्तराल में स्वाभाविक कार्यरत रहती हैं। यह ब्राह्मणत्व की निम्नतम सीमा है। उच्चतम सीमा जब आती है, जब क्रमशः उन्नत होते-होते वह ब्रह्म का दिग्दर्शन करके उसमें विलय पा जाता है। जिसे जानना था, जान लिया। वह पूर्णज्ञाता है। अपुनरावृत्तिवाला ऐसा महापुरुष उस विद्या-विनयसम्पन्न ब्राह्मण, चाण्डाल, कुत्ता, हाथी और गाय सब पर समान दृष्टिवाला होता है; क्योंकि उसकी दृष्टि हृदयस्थित आत्म-स्वरूप पर पड़ती है। ऐसे महापुरुष को परमगति में क्या मिला है और कैसे? इस पर प्रकाश डालते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण बताते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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