यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचम अध्याय
दिखावटी शोभायुक्त वाणी में वे उसे व्यक्त भी करते हैं। उनकी वाणी की छाप जिनके चित्त पर पड़ती है, उनकी भी बुद्धि नष्ट हो जाती है। वे कुछ पाते नहीं, नष्ट हो जाते हैं। जबकि निष्काम कर्मयोग में अर्जुन! निर्धारित क्रिया एक ही है-यज्ञ की प्रक्रिया ‘आराधना’। गाय, कुत्ता, हाथी, पीपल, नदी का धार्मिक महत्व इन अनन्त शाखावालों की देन है। यदि इनका कोई धार्मिक महत्व होता तो श्रीकृष्ण अवश्य कहते। हाँ, मन्दिर, मस्जिद इत्यादि पूजा के स्थल आरम्भिक काल में अवश्य हैं। वहाँ प्रेरणादायक सामूहिक उपदेश हैं तो उनकी उपयोगिता अवश्य है, वे धर्मोपदेश केन्द्र हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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