विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
साधना और सूक्ष्म हो जाने पर पश्यन्ती अर्थात् नाम देखने की अवस्था आ जाती है। फिर नाम को जपा नहीं जाता, यही नाम श्यास में ढल जाता है। मन को द्रष्टा बनाकर खड़ा कर दें, देखते भर रहें कि साँस आती है कब? बाहर निकलती है कब? कहती है क्या?” महापुरुषों का कहना है कि यह साँस नाम के सिवाय और कुछ कहती ही नहीं। साधक नाम का जप नहीं करता, केवल उससे उठनेवाली धुन को सुनता है। साँस को देखता भर है, इसलिये इसे ‘पश्यन्ती’ कहते हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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