विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
त्यक्त्वा कर्मफलासंग नित्यतृप्तो निराश्रयः।
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः। जिसने अन्तःकरण और शरीर को जीत लिया है, भोगों की सम्पूर्ण सामग्री जिसने त्याग दी है, ऐसे आशारहित पुरुष का शरीर केवल कर्म करता दिखायी भर पड़ता है। वस्तुतः वह करता-धरता कुछ नहीं, इसलिये पाप को प्राप्त नहीं होता। वह पूर्णत्व को प्राप्त है, इसीलिये आवागमन को प्राप्त नहीं होता।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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