विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। हे अर्जुन! जब-जब परमधर्म परमात्मा के लिये हृदय ग्लानि से भर जाता है, जब अधर्म की वृद्धि से भाविक पार पाते नहीं देखता, तब मैं आत्मा को रचने लगता हूँ। ऐसी ही ग्लानि मनु को हुई थी-
यह अवतार किसी भाग्यवान् साधक के अन्तराल में होता है। आप प्रकट होकर करते क्या हैं?- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रामचरितमानस, 1/142
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