विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रायः लोग कहते हैं कि भगवान का अवतार होगा तो दर्शन कर लेंगे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता कि कोई दूसरा देख सके। स्वरूप का जन्म पिण्डरूप में नहीं होता। श्रीकृष्ण कहते हैं-योग-साधना द्वारा आत्ममाया द्वारा अपनी त्रिगुणमयी प्रकृति को स्ववश करके मैं क्रमशः प्रकट होता हूँ। लेकिन किन परिस्थितियों में?
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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