विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायअथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः। संयम रूपी संजय ने अज्ञान से आवृत मन को समझाया कि हे राजन्! इसके उपरान्त ‘कपिध्वजः’- वैराग्य रूपी हनुमान, वैराग्य ही ध्वज है जिसका (ध्वज राष्ट्र का प्रतीक माना जाता है। कुछ लोग कहते हैं - ध्वजा चंचल थी, इसलिये कपिध्वज कहा गया। किन्तु नहीं, यहाँ कपि साधारण बन्दर नहीं स्वयं हनुमान थे, जिन्होंने मान-अपमान का हनन किया था - ‘सम मानि निरादर आदरही।’[1] प्रकृति की देखी-सुनी वस्तुओं से, विषयों से राग का त्याग ही ‘वैराग्य’ है। अतः वैराग्य ही जिसकी ध्वजा है) उस अर्जुन ने व्यवस्थित रूप से धृतराष्ट्र-पुत्रों को खड़े देखकर शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर ‘हृषीकेशम्’- जो हृदय के सर्वज्ञाता हैं, उन योगेश्वर श्री कृष्ण से यह वचन कहा - “हे अच्युत! (जो कभी च्युत नहीं होता) मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करिये।” यहाँ सारथी को दिया गया आदेश नहीं, इष्ट (सद्गुरु) से की गयी प्रार्थना है। किसलिये खड़ा करें?-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मानस, 7/13/छन्द
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