विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायस घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। उस घोर शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी शब्दायमान करते हुए धृतराष्ट्र-पुत्रों के हृदय विदीर्ण कर दिये। सेना तो पाण्डवों की ओर भी थी, किन्तु हृदय विदीर्ण हुए धृतराष्ट्र-पुत्रों के। वस्तुतः पांचजन्य, दैवी शक्ति पर आधिपत्य, अनन्त पर विजय, अशुभ का शमन और शुभ की घोषणा धारावाही होने लगे तो कुरुक्षेत्र, आसुरी सम्पद्, बहिर्मुखी प्रवृत्तियों का हृदय विदीर्ण हो जायेगा। उनका बल शनैः-शनैः क्षीण होने लगता है। सर्वथा सफलता मिलने पर मोहमयी प्रवृत्तियाँ सर्वथा शान्त हो जाती हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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