विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
स्वधर्म क्या है? अध्याय दो में श्रीकृष्ण ने स्वधर्म का नाम लिया कि स्वधर्म को देखकर भी तू युद्ध करने योग्य है। क्षत्रिय के लिये इससे बढ़कर कल्याणकारी मार्ग नहीं है। स्वधर्म में अर्जुन क्षत्रिय पाया जाता है। संकेत किया कि-अर्जुन! जो ब्राह्मण हैं, वेदों का उपदेश उनके लिये क्षुद्र जलाशय के तुल्य हैं। वे वेदों से ऊपर उठ और ब्राह्मण बन अर्थात् स्वधर्म में परिवर्तन स्म्भव है। वहाँ पुनः कहा कि राग-द्वेष के वश में न हो, इन्हें काट। स्वधर्म श्रयेस्कर है-इसका यह आशय नहीं है कि अर्जुन किसी ब्राह्मण की नकल करके उस-जैसी वेशभूषा बना ले।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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