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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
तृतीय अध्याय
इस भगवत्पथ में नकल का बाहुल्य है। ‘पूज्य महाराज जी’ को एक बार आकाशवाणी हुई कि अनुसुइया जाकर रहें, तो जम्मू से चित्रकूट आये और अनुसुइया क घोर जंगल में निवास करने लगे। बहुत से महात्मा उधर से आते-जाते थे। एक ने देखा कि परमहंस जी दिगम्बर, नंग-धड़ंग निवास करते हैं, उनका सम्मान है, तो तुरन्त उन्होंने कौपीन फेंका, दण्ड-कमण्डल एक अन्य महात्मा को दे दिया और दिगम्बर हो गये। कुछ काल बाद आये तो देखा कि परमहंस जी लोगों से बातें भी करते हैं, गालियाँ भी देते हैं। महाराज जी को आदेश हुआ था कि भक्तों के कल्याणार्थ कुछ ताड़ना दिया करें, इस पथ के पथिकों पर निगरानी रखें। महाराज जी की नकल कर वे महात्मा भी गालियाँ देने लगें; किन्तु बदले में लोग भी कुछ-न-कुछ कह बैठते थे। वे महात्मा कहने लगे-वहाँ कोई बोलता नहीं, यहाँ तो जवाब देते हैं।
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