यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 169

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

तृतीय अध्याय


इस भगवत्पथ में नकल का बाहुल्य है। ‘पूज्य महाराज जी’ को एक बार आकाशवाणी हुई कि अनुसुइया जाकर रहें, तो जम्मू से चित्रकूट आये और अनुसुइया क घोर जंगल में निवास करने लगे। बहुत से महात्मा उधर से आते-जाते थे। एक ने देखा कि परमहंस जी दिगम्बर, नंग-धड़ंग निवास करते हैं, उनका सम्मान है, तो तुरन्त उन्होंने कौपीन फेंका, दण्ड-कमण्डल एक अन्य महात्मा को दे दिया और दिगम्बर हो गये। कुछ काल बाद आये तो देखा कि परमहंस जी लोगों से बातें भी करते हैं, गालियाँ भी देते हैं। महाराज जी को आदेश हुआ था कि भक्तों के कल्याणार्थ कुछ ताड़ना दिया करें, इस पथ के पथिकों पर निगरानी रखें। महाराज जी की नकल कर वे महात्मा भी गालियाँ देने लगें; किन्तु बदले में लोग भी कुछ-न-कुछ कह बैठते थे। वे महात्मा कहने लगे-वहाँ कोई बोलता नहीं, यहाँ तो जवाब देते हैं।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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