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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
तृतीय अध्याय
इस कर्म को वेद से उत्पन्न हुआ जान। वेद ब्रह्मस्थित महापुरुषों की वाणी है। जो तत्त्व विदित नहीं है उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति का नाम वेद है, न कि कुछ श्लोक-संग्रह। वेद अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। कहा तो महात्माओं ने; किन्तु वे परमात्मा के साथ तद्रूप हो चुके हैं, उनके माध्यम से अविनाशी परमात्मा ही बोलता है, इसलिये वेद को अपौरुषेय कहा जाता है। महापुरुष वेद कहाँ से पा गये? तो वेद अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ। वे महापुरुष उसके तद्रूप हैं, वे मात्र यन्त्र हैं इसलिये उनके द्वारा वही बोलता है। क्योंकि यज्ञ के द्वारा ही मन के निरोधकाल में वह विदित होता है। इससे सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सर्वदा यज्ञ में ही प्रतिष्ठित है। यज्ञ ही से पाने का एकमात्र उपाय है। इसी पर बल देते हैं-
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