विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायअयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। इसलिये सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सब-के-सब भीष्म की ही सब ओर से रक्षा करें। यदि भीष्म जीवित हैं तो हम अजेय हैं। इसलिये आप पाण्डवों से न लड़कर केवल भीष्म की ही रक्षा करें। कैसा योद्धा है भीष्म, जो स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पा रहा है, कौरवों को उसकी रक्षा-व्यवस्था करनी पड़ रही है? यह कोई बाह्य योद्धा नहीं, भ्रम ही भीष्म है। जब तक भ्रम जीवित है, तब तक विजातीय प्रवृत्तियाँ (कौरव) अजेय हैं। अजेय का यह अर्थ नहीं कि जिसे जीता ही न जा सके; बल्कि अजेय का अर्थ दुर्जय है, जिसे कठिनाई से जीता जा सकता हो। यदि भ्रम समाप्त हो जाय तो अविद्या अस्तित्वहीन हो जाय। मोह इत्यादि जो आंशिक रूप से बचे भी हैं, शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगे। भीष्म की इच्छा-मृत्यु थी। इच्छा ही भ्रम है। इच्छा का अन्त और भ्रम का मिटना एक ही बात है। इसी को सन्त कबीर ने सरलता से कहा- इच्छा काया इच्छा माया, इच्छा जग उपजाया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रामचरितमानस, 6/80 क
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