भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 75

Prev.png

भागवत धर्म मीमांसा

1. भागवत-धर्म

 
(2.2) ये वै भगवता प्रोक्ता उपाया ह्यात्म-लब्धये।
अंजः पुंसां-अविदुषां विद्धि भागवतान् हि तान्।।[1]

इसे भागवत-धर्म क्यों नाम दिया गया? तो समझा रहे हैं :

ये वै भगवता प्रोक्ताः उपायाः।
  • ये- जो।
  • वै- ही।
  • भगवता- भगवान द्वारा।
  • प्रोक्ताः- कहे गये।
  • उपायाः- उपाय हैं।

अर्थात भगवान् ने भगवत- प्राप्ति के ये उपाय बताए, इसीलिए इनका नाम ‘भागवत-धर्म’ है। किसलिए बताये? आत्मलब्धये यानि अपनी लब्धि (प्राप्ति) के लिए। दुनिया में हमें सब कुछ हासिल है। पैसा, घर, तरह-तरह के पदार्थ, बहुत कुछ हमने हासिल कर लिया है, लेकिन एक चीज हमारी खो गयी है- खुद को ही खो बैठे हैं। बाकी सब प्राप्तियाँ हैं। विद्या पढ़ी, तो विद्या-प्राप्ति है। धन कमाया, तो धन-प्राप्ति है, लेकिन हमें अपनी ही प्राप्ति, आत्म-प्राप्ति नहीं हुई। महाराष्ट्र में संत रामदास स्वामी हो गये हैं। परमात्म-प्रसाद का अनुभव होने पर उन्होंने लिखा है : बहुता दिसा आपुली भेट झाली- बहुत दिनों बाद मेरी खुद अपने से मुलाकात हुई, जो अब तक हो नहीं पायी थी। तो, भगवान ने ये जो ‘अपनी’ प्राप्ति के उपाय बताये, उन्हीं का नाम है भागवत धर्म।

‘कैसे हैं ये उपाय?’ तो कहते हैं :

अंजः पुंसां-अविदुषां विद्धि भागवतान् हि तान्।
  • अंजः- सादे, सरल।
  • पुंसां-अविदुषाम्- मूढ़ जनों के लिए।
  • विद्धि- (कहे गये) समझो।
  • भागवतान् हि तान्- उनको भागवत धर्म ही (समझो)।

मूढ़ जनों के काम आने वाले, सीधे-सादे, सरल उपाय भगवान ने बताये हैं। वैसे केवल विद्वानों के काम आने वाले दूसरे भी उपाय हैं, और भी मार्ग हैं, जिनमें एक है कर्म वाला वैदिक मार्ग- सतत कर्मनिष्ठा। इसका व्यावहारिक रूप कहा जा सकता है : ‘आराम हराम है!’ लेकिन साधारण मनुष्य इससे घबड़ा जाता है, भले ही पं. नेहरू जी जैसे असाधारण व्यक्ति रात में पाँच घंटे निद्रा और दिन में एक घंटा आराम- इस तरह लगातार 17-18 घंटे काम करके इस मार्ग का शान से अनुसरण कर दिखाते रहे हों।

दूसरा मार्ग है, उपनिषद् का ध्यान-मार्ग, जिसका व्यावहारिक सूत्र कहा जा सकता है : ‘लब (जबान) बंद चश्म (आँख) बंद, गोश (कान) बंद!’ पर ऐसा ध्यान करना, आत्मा को आत्मा में लीन करना- ब्रह्मविद्या का यह मार्ग भी बड़ा कठिन है। वैसे बाबा का ‘गोश’ तो बंद हो ही गया। आँख चली जाय तो दूसरा भी बंद हो जाएगा। फिर गूंगा बन जाऊँ तो तीसरा भी आसानी से बंद हो जाय। मतलब यह कि मार्ग भी बड़ा ही कठिन है। उपनिषद् ने कहा है :

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुरगं पथः तत् कवयो वदन्ति।

अर्थात सत्य का मार्ग कैसा है, तो क्रांतदर्शी लोग बताते हैं कि वह उस्तरे की धार जैसा बड़ा कठिन, बड़ा दुर्गम मार्ग है। किंतु ये दोनों मार्ग भागवत धर्म नहीं। भागवत धर्म तो प्रेमवाला मार्ग है और अविदुषां पुंसाम्- अज्ञानी लोगों के लिए बताया हुआ अंजः- सरल मार्ग है। वह मार्ग और कैसा है? तो कहते हैं :

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत 11.2.34

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः