बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 7

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

2. क्या मैं बावरी हूँ?

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जाने के एक दिन पहले तक बड़े आनन्द से
साथ नाचे-कूदे,
मानो जीवनभर ऐसा ही करना है,
और अचानक दूसरे दिन
क्रूर अक्रूर के साथ रथ में बैठकर चल दिये।
मुख पर तनिक भी उदासी नहीं,
तनिक भी चिन्ता नहीं।
हम रोती-बिलबिलाती रह गयीं,
आप रथ से न उतरे,
रथपर से ही समझा-बुझा दिया।
यही तुम्हारा प्रेम था?
सच कहती हूँ कन्हैया!
अब तुम मिलो तो तुम्हें जी भरकर कोसूँ,
तुम्हारी मुरली तोड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दूँ।
तुम्हारी ओर ताकूँ भी नहीं,
तुम मनाते-मनाते हार जाओ,
पैर पकड़कर बार-बार क्षमा माँगो,
तब कहीं बोलूँ।
मगर तुम तो आते ही नहीं,
हाय राम! क्या करूँ?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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