गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 404

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 15

‘अपराऽनिमिषद्दृग्म्यां जुषाणा तन्मुखाम्बुजम्।
अपीतमपि नातृप्यत् सन्तस्तच्चरणं यथा।।’[1]

अर्थात, जैसे संतजन भगवान् के मंगलमय चरणारविन्दों का रसास्वादन करते हुए नहीं अघाते अपितु उनकी पिपासा उत्तरोत्तर वृद्धिंगत ही होती रहती है; अथवा जैसे सन्निपात ज्वर-ग्रस्त रोगी को पिपासा शीतल सुगन्धित जलपान से वृद्धिंगत होती जाती है वैसे ही भक्त की पिपासा भगवान् के माधुर्यामृत के रसास्वादन से वृद्धिंगत ही होती रहती है।

‘राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस विशेष जाना तिन्ह नाहीं।।’[2]

जिनको राम चरित सुनते-सुनते तृप्ति हो गई उन्होंने रस की परिभाषा ही नहीं समझी। अर्थात, यद्यपि द्वारकास्थ पट्टमहिषी जनों एवं श्रीव्रजसीमंतिनी जनों का पूर्णतम पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण से कदापि वियोग नहीं होता, सदा सर्वदा पूर्णरूप से उनको भगवत्-संस्पर्श प्राप्त है तथापि भगवान् के मंगलमय चरणारविन्द-युगल उनको प्रतिक्षण नवनवायमान होकर ही प्रतिभासित होते हैं क्योंकि यह रस अगाध है, अनन्त है। जैसे अनन्त आकाश में अपनी-अपनी शक्तिभर उड़ने पर भी उसकी थाह नहीं पायी जा सकती वैसे ही अपनी-अपनी भावनानुसार भगवान् के अन्तानन्त सौन्दर्य-माधुर्य सौरस्य-सुधा का रसास्वादन करते हुए भी भक्त अघाते नहीं। कौन ऐसी सीमन्तिनी होगी जो भगवान् के मंगलमय पदारविन्द के अद्भुत माधुर्यामृत रसास्वादन कर-कर तृप्त हो जाय? श्री लक्ष्मी चपला-चंचला होते हुए भी भगवच्चरणारविन्दों में अचपला, अचंचला, स्थिरा हो जाती हैं क्योंकि इन चरणारविन्द-युगल के माधुर्यामृत-रसास्वादन के उत्तरोत्तर वृद्धिंगत आनन्द से अघाती ही नहीं।

‘अपराऽनिमिषद्दृग्भ्यां जुषाणा तन्मुखाम्बुजम्।
आपीतमपि नातृप्यत् सन्तस्तच्चरणं यथा।।’[3]

अर्थात, श्री भगवान् के अदर्शन-काल में तो भीषण संताप होता ही है परन्तु दर्शन-काल में भी सुख नहीं हो पाता क्योंकि अनेक विघ्न उपस्थित हो जाते हैं। कभी कोई ग्वाल-बाल ही बीच में आ जाते हैं तो कभी उनकी ये कुटिल घुँघराली लटें ही भगवान्-मुखारविन्द को आवृत कर लेती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भाग0 10/32/7
  2. मानस, उत्तर0 52 ख
  3. श्रीमद्भा0 10/32/7

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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