गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 11यह प्रीति का चमत्कार है कि प्रत्यक्ष, जाज्वल्यमान सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमत्ता, अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड नायकता भी आवृत हो जाती है, और मधुरिमा प्रस्फुटित हो जाती है। इस माधुर्यानुभूति के ही कारण विप्रयोगजन्य तीव्र संतापादि अनेक भावों की अभिव्यक्ति होती है। जैसे, कवियों द्वारा की गई अनूठी उक्ति द्वारा भाव-विशेष में भी विशिष्ट चमत्कृति आ जाती है, वैसे ही माधुर्य-भावपूर्ण अनुभूतियों के कारण विशिष्ट रसोद्रेक होता है; रसोद्रेक से विभिन्न भावनाओं की चमत्कारपूर्ण अनुभूतियाँ होती हैं। गोपांगनाओं का संताप भी माधुर्य-भाव जन्य रसोद्रेक ही है। ‘नाथ’ शब्द का एक अर्थ उपतापक भी है। ‘नाधृ याच्मोपतापैश्वर्याशीःषु’ गोपांगनाएँ कहती हैं, ‘हे श्यामसुन्दर! आप हमारे उपतापक ही हैं। आप अपने विभिन्न दिवा-कार्य-कलापों द्वारा हमें कष्ट ही पहुँचाते हैं। दिवा-प्रकाश के साथ ही साथ आप गोचारण प्रसंग से स्वेच्छया ही वन प्रांतर में इतस्ततः विहरण करते रहते हैं और हम आपके निरावरण सकोमल पादारविन्दों में वृन्दावन धाम के कुश-काश-श्ज्ञिल-तृणांकुरादि के द्वारा आघात लग जाने की आशंका से अत्यन्त सन्तप्त होती रहती हैं। ‘यत्ते सुजात चरणाम्बुरुहं स्तनेषु |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.3.19